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श्रीसौर धर्म महासम्मेलन अयोध्याधाम को सफल बनाने मे तन मन धन से करें सहयोग – शैलेश

श्रीसौर धर्म महासम्मेलन अयोध्याधाम को सफल बनाने मे तन मन धन से करें सहयोग – शैलेश

आरा। आगामी 22-23 मार्च को अयोध्या मे आयोजित श्रीसौर धर्म महासम्मेलन को लेकर आयोजन समिति अयोध्या धाम एवं कार्यक्रम के कार्यकारी अध्यक्ष अमरेन्द्र कुमार मिश्र तथा मग धर्म संसद के संयोजक शैलेश पाराशर ने समस्त मग समाज से निवेदन किया है कि तन मन धन से सहयोग कर सम्मेलन को सफल बनाने मे अपनी महत्वपूर्ण योगदान करें।वहीं शैलेश पाराशर ने कहा कि समस्त जीवन यज्ञ है, यज्ञ केन्द्र है, यज्ञ आत्मा है।यज्ञ बीज है, यज्ञ प्राण है और यही यज्ञ आकाश है, ब्रह्म है।यज्ञ संज्ञा है और क्रिया भी।यज्ञ ही ब्रह्म विद्या है, यज्ञ ही मधु विद्या, यज्ञ परा और अपरा विद्या है, यज्ञ में ही समष्टि और व्यष्टि है।जो यज्ञ के रहस्य को जान लेगा वह भारतीय संस्कृति को जान लेगा।जिसने यज्ञ के रहस्य को नहीं जाना वह कर्मकांड में तो प्रवेश कर सकता है।वह अग्नि में घी तो डाल सकता है, लेकिन वह यज्ञ के परिणाम स्वरूप उत्पन्न आनंद को नहीं जान सकता।संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह वैश्व यज्ञ है। लौकिक दृष्टि से समस्त सृजन और विध्वंस यज्ञ में स्थित है।यही है “प्राणो यज्ञेन न कल्पताम्” अर्थात् प्राण ऊर्जा द्वारा अनंत कल्पों तक सर्वकल्याण होता रहे।जब प्राण यज्ञमय हो जाते हैं तब वह दिव्य आनंद के रुप में आते हैं।
जहां अहंकार है, वहां यज्ञ नहीं है जहां मैं और तुम की भेद दृष्टि है वहां यज्ञ नहीं है।भेद की दृष्टि से प्राण पापविद्ध हो जाते हैं।जहां कहीं स्वार्थ और अहंकार होंगे वहां भेद दृष्टि करेंगे ही। फिर तेज़ और ओज का क्षय हो जाता है।पराक्रम शून्य हो क्षूद्रता में प्रवेश कर जाता है। प्राणों का क्षूद्रता में प्रवेश ही अंततः प्राण के यश को नष्ट कर देता है।यश और कीर्ति का नाश ही मृत्यु है।यही है नरक यही है, अशांति, यही है कलह, यही है राग। यजुर्वेद में बहुत सुन्दर प्रार्थना है- “यज्ञ यज्ञं गच्छ यज्ञपतिं गच्छ स्वां योनि गच्छ”।साधक स्वयं को तो अर्पित करता ही है,वह स्वयं यज्ञमय भी हो जाना चाहता है।यज्ञ याज्ञिक में प्रवेश कर‌ जाये और याज्ञिक यज्ञ में।समस्त यज्ञों का केंद्र है सत्य, प्रकाश और अमरत्व की खोज।जो सत्य से नहीं जुड़ता जो अंतस को प्रकाशित नहीं करता जो बंधनों से मुक्ति नहीं देता वह यज्ञ हो ही नहीं सकता।मात्र कर्मकांड यज्ञ नहीं है। य़दि अंतस के अंधकार को नष्ट करने की शक्ति कर्मकांड में नहीं है तो मात्र आहुतियां डालने से यज्ञ नहीं हो सकता।यज्ञ की कसौटी है कि अंधकार की शक्तियों को संकल्प के साथ पराजित करना। ऋग्वेद में कहा गया है कि अंधकार की शक्तियां सत्य की धाराओं को बहने में बाधा डालती हैं अतः हमें उसका विरोध करना चाहिए। यह विरोध ही यज्ञ है। इसीलिए ऋषियों के यज्ञ में राक्षस उपद्रव करते थे जिन्हें रोकने के लिए देवता को आना पड़ता था।
हमलोग प्रकाश (सूर्य) के संतान और असीमता के पुत्र हैं। हमलोग आत्मा के अंदर अपने बंधुत्व और सख्य को पहचानें और आगे बढ़ें। देवता मनुष्य को पुकारते हैं एक दिव्य सख्य और साथीपन के लिए।प्रकाशमय भ्रातृत्व के लिए। सौभाग्य है कि भगवान श्रीराम जन्मभूमि में आयोजित श्रीसौर धर्म यज्ञ महोत्सव दिनांक -२२/२३/ मार्च २०२५ को हो रहा है।आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

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